Friday 31 March 2017

एक कछुआ करेगा सारे वास्तु दोष दूर, कछुआ करेगा धन वर्षा । वास्तु विशेष ।

कछुआ, fengshui tortoise


वास्तु विशेष


भारत के पुराणों में कछुए का काफी जिक्र होता आया है। भगवान विष्णु का एक रूप कछुआ भी है। समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु ने कछुए का रूप धारण किया था। धार्मिक रूप में कछुआ सौभाग्यशाली माना जाता है।इसलिए कछुए की पूजा भी होती है। वास्तु शास्त्र में कछुए के कई गुण गिनाये गए हैं। जो आपको हर तरह से फायदा दे सकता है। कछुऐ का चित्र या कछुआ रखने से आपकी कई सारी परेशानियां ठीक हो जाती हैं। आइये जानते हैं कुछए के वास्तु टिप्स। चीन की वास्तु शास्त्र जिसे फेंग शई कहा जाता है। उसमें मौजूद अधिकतर निशानों में कछुआ ही बना हुआ है।

कछुए को उत्तर दिशा में राज करने वाला कहा गया है। इसलिए कछुए का चित्र आपको उत्तर दिशा की तरफ ही लगाना चाहिए। कछुए को उत्तर दिशा में रखने से धन लाभ और शत्रुओं का नाश होता है। उत्तर दिशा वास्तु के अनुसार शुभ दिशा होती है। और इस शुभ जगह पर कछुए को रखने से लाभ होता है

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आपको तो पता ही होगा कि कछुआ लंबे समय तक जीता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार कछुआ घर पर रखना भी शुभ माना जाता है। यदि आप स्वस्थ कछुआ अपने घर में रखते हैं तो आपकी आयु लंबी होती है। साथ ही घर में किसी भी तरह की धन की कमी नहीं रहती है। और घर परिवार भी सुरक्षित रहता है।

यदि आप व्यवसायी हैं तो अपनी दुकान के मुख्य गेट पर कछुए का चित्र लगाना चाहिए। एैसा करने से आपको व्यापार में धन लाभ और सफलता मिलती है और रूके हुए काम जल्दी होने लगते हैं।
कछुआ घर में ढेर सारा भाग्य लाता है। घर के मेन गेट पर कछुए का चित्र लगाने से परिवार में शांति बनती हैं। कछुआ क्लेश व नकारात्मक चीजों को घर से भगा देता है।
इसके अलावा घर में नकारात्मक उर्जा भी खत्म तो होती ही है साथ ही साथ घर के लोगों को मूढ़ भी अच्छा रहता है। यानि कि कछुए को रखने से सकारात्मक उर्जा घर में बनी रहती है।
कछुए का चित्र पूर्व दिशा में लगाने से घर के सदस्यों में एकता बनी रहती है। और आपस में झगड़ा भी नहीं होता है।
कछुए को नार्थ में रखने से आपका प्रभाव समाज में बढ़ता है।
कछुए का चित्र अपने जेब या पर्स में रखने से आपके पास धन की कमी नहीं रहती है। कहीं न कहीं से आपको धन योग बन जाता है।

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सेहत के लिए भी महत्वपूर्ण है कछुआ

यदि घर में लोगों की सेहत खराब रहती हो और जिसका कारण समझ न आ पा रहा हो। ऐसे में आप कछुए को घर के दक्षिण पूर्व दिशा में लगाएं। इस उपाय से घर में धन लाभ भी होता है।

कछुआ रखने के अन्य लाभ

घर का वातावरण साफ व शुद्ध रहता है।
घर में किसी की बुरी नजर नहीं लगती है। कछुआ नजर दोष खत्म करता है।
गंदी बीमारियां घर में नहीं आती हैं।
कछुआ रखने से बहुत फायदे मिलते हैं। यह एक अच्छे दोस्त की तरह आपके साथ रहता है। और आपकी सारी परेशानियों को भी दूर करता है।

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Thursday 30 March 2017

नवरात्रि मे माँ के किस रूप की अराधना होगी सफल, जानिए राशि अनुसार ।


नवरात्रि विशेष


हिंदुओं के पवित्र नवरात्रि शुरू हो चुके हैं, इन नवरात्रों के दौरान हिंदुओं का नव वर्ष प्रारंभ होता है तथा इन नव वर्ष के आरंभ में ही 9 दिन भगवती दुर्गा को समर्पित होते हैं जिनकी आराधना से विवेक, बुद्धि, ऐश्वर्य तथा ज्ञान प्राप्त होता है. वैसे तो मां भगवती दुर्गा का हर रूप प्रत्येक मानव के लिए अत्यंत ही कल्याणकारी होता है परंतु अगर कोई मनुष्य अपनी राशि के अनुरूप देवी के रूप की पूजा करता है तो उसके लिए सोने पे सुहागा वाली बात होती है तथा असफलता के चांस कम होते हैं और तुरंत सफलता भी मिलने लगती है.
आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आप अपनी राशि के अनुसार मां दुर्गा के किस रूप की पूजा करें. आइए जानते हैं


~1. मेष राशि

मेष राशि के लोगों के लिए स्कंदमाता की पूजा अत्यंत ही फलदाई होती है तथा इनकी आराधना से भक्तो सारे मनोरथ एवं सपने पूर्ण हो जाते हैं.

 

~2. वृषभ राशि

वृषभ राशि के लोग बहुत मेहनती माने जाते हैं तथा इन राशि के लोगों के लिए मां दुर्गा की महागौरी स्वरूप की आराधना विशेष फलदाई रहती है. इससे इन्हें मनवांछित सिद्धि मिलती है.

 

~3. मिथुन राशि

मिथुन राशि के लोगों को ज्ञान, विद्या एवं समृद्धि प्राप्त करने के लिए मां दुर्गा के एक अन्य स्वरूप ब्रह्मचारिणी की उपासना करनी चाहिए. यह उपासना मिथुन राशि के लोगों के लिए अत्यंत ही श्रेष्ठ होती है.

 

~4. कर्क राशि

कर्क राशि बहुत ही श्रेष्ठ राशि मानी जाती है और कर्क राशि के लोगों को अपने मनोरथ पूर्ण करने के लिए मां भगवती के एक स्वरूप शैलपुत्री की उपासना करनी चाहिए. शैलपुत्री की उपासना से कर्क राशि वालों को विशेष लाभ मिलता है तथा इनके मार्ग में आने वाली सभी बाधाएं अपने आप ही दूर होती चली जाती है.

 

~5. सिंह राशि

सिंह राशि एक उग्र राशि मानी जाती है तथा सिंह राशि के लिए मां कुष्मांडा की विशेष पूजा का प्रावधान है. सिंह राशि वाले एक बात का ध्यान रखें कि मां कुष्मांडा की आराधना करते हुए दुर्गा मंत्रों का जाप अवश्य करें ऐसा करने पर आप के सभी बंधन कटते हैं तथा जीवन में श्रेष्ठता की स्थिति प्राप्त होती है.

 

~6. कन्या राशि

कन्या राशि के लोग भावुक एवं नरम हृदय माने जाते हैं. कन्या राशि के लोगों के लिए ब्रह्मचारिणी की विशेष पूजा का प्रावधान शास्त्रों में रखा गया है. ब्रह्मचारिणी की पूजा से बुद्धि श्रेष्ठ होती है और अगर व्यापार पर किसी ने बंधन किया हो तो वह कटता है, विद्या, ज्ञान की विशेष प्राप्ति होती है 


~7. तुला राशि

तुला राशि के लोग न्याय पसंद होते हैं और तुला राशि के लोगों को महागौरी की पूजा आराधना से विशेष लाभ भी प्राप्त होता है.

 

~8. वृश्चिक राशि

वृश्चिक राशि के लोग मां स्कंदमाता की अवश्य ही आराधना व उपासना करें जिससे कि इन्हें श्रेष्ठ फल एवं सिद्धि की प्राप्ति हो.

 

~9. धनु राशि

धनु राशि के लोग मां दुर्गा के एक अन्य दिव्य स्वरुप चंद्रघंटा की उपासना अवश्य करें जिससे इनके जीवन की समस्याएं ही दूर हो तथा पूरे साल भर उर्जा एवं स्फूर्ति से भरे रहें.

 

~10. मकर राशि

मां दुर्गा का एक रूप कालरात्रि अत्यंत ही उग्र माना गया है तथा शत्रु नाश, तंत्र बाधा समाप्त करने, रुका हुआ धन प्राप्त करने तथा अपने प्रतिद्वंदियों पर हावी रहने के लिए कालरात्रि की पूजा सर्वश्रेष्ठ मानी गई है और मकर राशि वालों के लिए तो कालरात्रि विशेष रूप से फलदाई रहती है. इसलिए मकर राशि के लोगों को कालरात्रि की पूजा अवश्य ही करनी चाहिए.

 

~11. कुंभ राशि

कुंभ राशि के लोगों को भी कालरात्रि की उपासना अवश्य ही करने चाहिए क्योंकि आम तौर पर यह देखा गया है कि कुंभ राशि के लोग शनि से ज्यादातर पीड़ित रहते हैं तथा उनके जीवन में धन और शत्रु बाधा भी निरंतर रहती है. मां कालरात्रि की उपासना आपको सभी संकटों से बचाती है तथा आपके आसपास ऐसी ऊर्जा निर्मित होती है जो आपके लिए का अभेद सुरक्षा चक्र का निर्माण करती है.

 

~12. मीन राशि

मीन राशि के लोगों को मां भगवती के ही एक अन्य स्वरुप चंद्रघंटा की उपासना अवश्य ही करनी चाहिए, जिससे उनके जीवन में निरंतर लाभ की स्थिति बनी रहे.

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9 दिन 9 मंत्रो का जाप करें, हर इच्छा होगी पूरी । जरूर देखें, हर कार्य होगा सफल ।



माता दुर्गा के 9 रूपों की साधना करने से भिन्न-भिन्न फल प्राप्त होते हैं। कई साधक अलग-अलग तिथियों को जिस देवी की तिथि हैं, उनकी साधना करते हैं। आइए जानें कि हर दिन किस मंत्र से करें देवी आराधना...


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(1) माता शैलपुत्री : प्रतिपदा के दिन इनका पूजन-जप किया जाता है। मूलाधार में ध्यान कर इनके मंत्र को जपते हैं। धन-धान्य-ऐश्वर्य, सौभाग्य-आरोग्य तथा मोक्ष के देने वाली माता मानी गई हैं।

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:।'


(2) माता ब्रह्मचारिणी : स्वाधिष्ठान चक्र में ध्यान कर इनकी साधना की जाती है। संयम, तप, वैराग्य तथा विजय प्राप्ति की दायिका हैं।

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:।'


(3) माता चन्द्रघंटा : मणिपुर चक्र में इनका ध्यान किया जाता है। कष्टों से मुक्ति तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए इन्हें भजा जाता है।

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:।'

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(4) माता कूष्मांडा : अनाहत चक्र में ध्यान कर इनकी साधना की जाती है। रोग, दोष, शोक की निवृत्ति तथा यश, बल व आयु की दात्री मानी गई हैं।

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:।'


(5) माता स्कंदमाता : इनकी आराधना विशुद्ध चक्र में ध्यान कर की जाती है। सुख-शांति व मोक्ष की दायिनी हैं।

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:।'


(6) माता कात्यायनी : आज्ञा चक्र में ध्यान कर इनकी आराधना की जाती है। भय, रोग, शोक-संतापों से मुक्ति तथा मोक्ष की दात्री हैं।

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:।'

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(7) माता कालरात्रि : ललाट में ध्यान किया जाता है। शत्रुओं का नाश, कृत्या बाधा दूर कर साधक को सुख-शांति प्रदान कर मोक्ष देती हैं।

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:।'


(8) माता महागौरी : मस्तिष्क में ध्यान कर इनको जपा जाता है। इनकी साधना से अलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं। असंभव से असंभव कार्य पूर्ण होते हैं।

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:।'


(9) माता सिद्धिदात्री : मध्य कपाल में इनका ध्यान किया जाता है। सभी सिद्धियां प्रदान करती हैं।

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्यै नम:।'


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नवरात्रि के 9 दिन करें,ये 9 उपाय हर कार्य होगा सफल ।

नवरात्रि को ना करें ये 9 काम । नवरात्रि विशेष । क्या करे, क्या ना करे एक बार जरूर देखें

 

नवरात्रि विशेष


नवरात्री हिन्दुओ के विशेष पर्वो मे से एक है जिसे पूरे भारत वर्ष मे बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है| इन दिनों मे लोग नौ दिनों तक माँ भगवती के नौ स्वरुपों की पूजा करते है | नवरात्री के पहले दिन माँ भगवती की मूर्ति की स्थापना की जाति है और कलश स्थापना की जाति है जिसे गणेश जी का स्वरूप मन जाता है| नवरात्री के दोरान किये जाने वाले हर काम को शुभ माना जाता है|

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नवरात्री के दिनों मे लोग माँ भगवती के नाम से आठ 8 या नौं 9 दिनों का पूर्ण व्रत रखते है और कुछ लोग प्रतिपदा (प्रथम) और अष्टमी का व्रत रखते हैं| हर कोई आपनी श्रद्ध अनुसार व्रत रखते है, लेकिन नवरात्री के दिनों में व्रत रखने वालों के लिए कुछ नियम होते हैं ऐसी ही कुछ बातों के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं जिसे आपको नवरात्रि के व्रत में खास ख्याल रखना चाहिए।

नवरात्री व्रत के दौरान क्या ना करें

1 :- नवरात्रि में नौ दिन का व्रत रखने वालों को इस व्रत के दौरान दाढ़ी-मूंछ और बाल नहीं कटवाने चाहिए।

2 :- कलश स्थापना करने या अखंड दीप जलाने वालों को नौ दिनों तक अपना घर खाली नहीं छोड़ना चाहिए।

3 :- व्रत को नौ दिनों तक नाखून नहीं काटने चाहिए।

4 :- नवरात्री का व्रत करने वालों को पूजा के दौरान बेल्ट, चप्पल-जूते या फिर चमड़े की बनी चीजें नहीं पहननी चाहिए।

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5 :- नवरात्री के दौरान आप को काले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए।

6 :- नवरात्री का व्रत करने वालों को किसी का भी दिल नहीं दुखाना चाहिए।

7 :- नवरात्रि के प्रत्येक 9 दिन माँ के अलग अलग स्वरुपों की विधिपूर्वक पूजा इन 9 दिनों में पवित्रता और शुद्धि का विशेष ध्यान रखा जाता है | इन नियमो का पालन और विधिपूर्वक की गयी पूजा से माँ दुर्गा की कृपा से साधनाएं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। घर में सकारात्मक उर्जा का संचार होता है और नकारात्मक उर्जा ख़त्म होती है |

8 :- विष्णु पुराण के अनुसार नवरात्रि व्रत के समय दिन में नहीं सोना चाहिए।

9 :- नौ दिन तक सात्विक भोजन करना चाहिए।

नवरात्रि के 9 दिन करें,ये 9 उपाय हर कार्य होगा सफल ।

भगवान शिव को प्रसन्न करने के उपाय (राशि अनुसार)

 

      सभी देवताओं में भगवान शिव एक ऐसे देवता है जो अपने भक्तों की पूजा पाठ सेबहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते है इसलिए इन्हें भोलेनाथ कहा जाता है और यही कारण था की असुर भी वरदान प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की तपस्या किया करते थे और उनसे मनचाहा वरदान प्राप्त कर लेते थे। आज हम आपको यहाँ पर राशि अनुसार, शिव पूजन के कुछ ऐसे आसान उपाय बता रहे है।


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 { उपाय राशि अनुसार }

  {मेष}
इस राशि का स्वामी मंगल है और मंगल का पूजन शिवलिंग रूप में ही किया जाता है। इस राशि के लोग शिवलिंग पर कच्चा दूध एवं दही अर्पित करें। साथ ही, भोलेनाथ को धतुरा भी अर्पित करें। कर्पूर जलाकर भगवान की आरती करें।


{ वृषभ }
वृष राशि के लोग किसी भी शिव मंदिर जाएं और भगवान शिव को गन्ने के रस से स्नान करवाएं। इसके बाद मोगरे का ईत्र शिवलिंग पर अर्पित करें। अंत में भगवान को मिठाई का भोग लगाएं एवं आरती करें।

 {  मिथुन }
आप स्फटिक के शिवलिंग की पूजा करेंगे तो श्रेष्ठ रहेगा। यदि स्फटिक का शिवलिंग उपलब्ध न हो तो किसी अन्य शिवलिंग का पूजन किया जा सकता है। मिथुन राशि के लोग लाल गुलाल, कुमकुम, चंदन, ईत्र आदि से शिवलिंग का अभिषेक करें। आक के फूल अर्पित करें। मीठा भोग लगाकर आरती करें।

 { कर्क }
इन लोगों को अष्टगंध एवं चंदन से शिवजी का अभिषेक करना चाहिए। बैर एवं आटे से बनी रोटी का भोग लगाकर शिवलिंग का पूजन करें। शिवलिंग पर प्रतिदिन कच्चा दूध अर्पित करें और साथ ही जल भी चढ़ाए । 

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  { सिंह }
इस राशि के लोगों को फलों के रस एवं पानी में शकर घोलकर शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए। साथ ही, शिवजी को आंकड़े के पुष्प अर्पित करें, मिठाई का भोग लगाएं। पुष्प के साथ ही बिल्व पत्र भी अर्पित करें।

{ कन्या }
आप महादेव को बैर, धतुरा, भांग और आंकड़े के फूल अर्पित करें। साथ ही बिल्व पत्र पर रखकर नैवेद्य अर्पित करें। अंत में कर्पूर मिश्रित जल से अभिषेक कराएं। शिवजी के पूजन के बाद आधी परिक्रमा अवश्य करें। ऐसा करने पर बहुत ही जल्द शुभ फल प्राप्त होते हैं।


{ तुला }
तुला राशि के लोग जल में तरह-तरह फूल डालकर उस जल से शिवजी का अभिषेक करें। इसके बाद बिल्व पत्र, मोगरा, गुलाब, चावल, चंदन आदि भोलेनाथ को अर्पित करें। अंत में आरती करें।

 { वृश्चिक }
इन लोगों को शुद्ध जल से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए। शहद, घी से स्नान कराने पश्चात पुन: जल से स्नान कराएं एवं पूजन कर आरती करें। लाल रंग के पुष्प अर्पित करें। पूजन के बाद मसूर की दाल का दान करें

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{ धनु }
धनु राशि के लोग भात यानी चावल से शिवलिंग का श्रृंगार करें। पहले चावल को पका लें, इसके बाद पके हुए चावल को ठंडा करके शिवलिंग का श्रृंगार करें। सुखे मेवे का भोग लगाएं। बिल्व पत्र, गुलाब आदि अर्पित करके आरती करें।

{ मकर }
आप गेंहू से शिवलिंग को ढंककर, विधिवत पूजन करें। पूजन-आरती पूर्ण होने के बाद गेंहू का दान जरूरतमंद लोगों को कर दें। इस उपाय से आपकी सभी समस्याएं समाप्त हो सकती हैं।

{ कुंभ }
इन लोगों को यह उपाय करना चाहिए- सफेद-काले तिल को मिलाकर किसी ऐसे शिवलिंग पर चढाएं जो एकांत स्थान में स्थित हो। जल में तिल डालकर शिवलिंग को अच्छे से स्नान कराएं। इसके बाद काले-सफेद तिल अर्पित करें, पूजन के आद आरती करें।

{ मीन }
इस राशि के लोगों को रात में पीपल के नीचे बैठकर शिवलिंग का पूजन करना चाहिए। इस समय ऊँ नम: शिवाय का पैंतीस (35) बार उच्चारण कर बिल्व पत्र चढ़ाएं तथा आरती करें। शिवलिंग पर चने की दाल चढ़ाएं और पूजन के बाद इसका दान करें।

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इसलिए मनाते हैं होली ! होली की अनसुनी कहानी । कुछ राज जो शायद आप ना जानते हो ।

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होली क्यों मनाते हैं?

‘रंगों के त्यौहार’ के तौर पर मशहूर होली फाल्गुन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। तेज संगीत और ढोल के बीच एक दूसरे पर रंग और पानी फेंका जाता है। भारत के अन्य त्यौहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार होली से हिरण्यकश्यप की कहानी जुड़ी है।


 होली का इतिहास


हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत का एक राजा था जो कि राक्षस की तरह था। वह अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेना चाहता था जिसे भगवान विष्णु ने मारा था। इसलिए ताकत पाने के लिए उसने सालों तक प्रार्थना की। आखिरकार उसे वरदान मिला। लेकिन इससे हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझने लगा और लोगों से खुद की भगवान की तरह पूजा करने को कहने लगा। इस दुष्ट राजा का एक बेटा था जिसका नाम प्रहलाद था और वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। प्रहलाद ने अपने पिता का कहना कभी नहीं माना और वह भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। बेटे द्वारा अपनी पूजा ना करने से नाराज उस राजा ने अपने बेटे को मारने का निर्णय किया। उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वो प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए क्योंकि होलिका आग में जल नहीं सकती थी। उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी, लेकिन उनकी योजना सफल नहीं हो सकी क्योंकि प्रहलाद सारा समय भगवान विष्णु का नाम लेता रहा और बच गया पर होलिका जलकर राख हो गई। होलिका की ये हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक है। इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया, लेकिन होली से होलिका की मौत की कहानी जुड़ी है। इसके चलते भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होली जलाई जाती है।


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लेकिन रंग होली का भाग कैसे बने?

यह कहानी भगवान विष्णु के अवतार भगवान कृष्ण के समय तक जाती है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण रंगों से होली मनाते थे, इसलिए होली का यह तरीका लोकप्रिय हुआ। वे वृंदावन और गोकुल में अपने साथियों के साथ होली मनाते थे। वे पूरे गांव में मज़ाक भरी शैतानियां करते थे। आज भी वृंदावन जैसी मस्ती भरी होली कहीं नहीं मनाई जाती।
होली वसंत का त्यौहार है और इसके आने पर सर्दियां खत्म होती हैं। कुछ हिस्सों में इस त्यौहार का संबंध वसंत की फसल पकने से भी है। किसान अच्छी फसल पैदा होने की खुशी में होली मनाते हैं। होली को ‘वसंत महोत्सव’ या ‘काम महोत्सव’ भी कहते हैं।

होली समारोह

होली एक दिन का त्यौहार नहीं है। कई राज्यों में यह तीन दिन तक मनाया जाता है।

दिन 1 – पूर्णिमा के दिन एक थाली में रंगों को सजाया जाता है और परिवार का सबसे बड़ा सदस्य बाकी सदस्यों पर रंग छिड़कता है।

दिन 2 – इसे पूनो भी कहते हैं। इस दिन होलिका के चित्र जलाते हैं और होलिका और प्रहलाद की याद में होली जलाई जाती है। अग्नि देवता के आशीर्वाद के लिए मांएं अपने बच्चों के साथ जलती हुई होली के पांच चक्कर लगाती हैं।

दिन 3 – इस दिन को ‘पर्व’ कहते हैं और यह होली उत्सव का अंतिम दिन होता है। इस दिन एक दूसरे पर रंग और पानी डाला जाता है। भगवान

होली से जुड़े दृश्य के लिए देखे वीडियो!

माँ के इस मंदिर में तेल या घी से नहीं बल्कि पानी से जलता है दिया !

 
 

  नमस्कार दोस्तों स्वागत है , आपका वास्तु शास्त्र में । दोस्तो आपने माता जी के चमत्कारों के बारे में तो सुना ही होगा और कई देखें भी होगे लेकिन जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं वह शायद आपने नहीं देखा होगा तो आइए ।

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कालीसिंध नदी के किनारे नलखेड़ गांव से लगभग 15 किलोमीटर दूर गड़िया गांव के पास गड़ियाघाट वाली माता जी के नाम से प्रसिद्ध है। लोग यहां होने वाले चमत्कार को देखकर श्रद्धा से शीश झुकाते हैं। इस मंदिर में घी से नहीं अपितु पानी से दीपक जलाया जाता है। दीपक में पानी डालने से यह किसी तरल पदार्थ की तरह चिपचिपा हो जाता है जिस कारण यह लगातार जलता रहता है। माता जी के इस अद्भुत चमत्कार को देखने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं।



चमत्कार का इतिहास एवं राज

कहा जाता है कि पहले मंदिर में दीपक घी से जलाया जाता था परंतु लगभग 5 वर्ष पूर्व माता जी ने मंदिर के पुजारी को सपने में दर्शन देकर कहा कि पानी से दीपक जलाया जाए।

उन्होंने जब सुबह पानी से दीपक जलाया तो वह प्रज्वलित हो गया। तभी से आज तक कालीसिंध नदी के जल से दीपक प्रज्वलित किया जाता है।


विशेष तथ्य

बरसात के मौसम में यह दीपक नहीं जलता क्योंकि उस समय पानी का स्तर बढ़ने के कारण मंदिर जलमग्न हो जाता है। जिसके कारण यहां पूजा नहीं होती। शारदीय नवरात्रि के पहले दिन अर्थात पड़वा से पुन: ज्योत प्रज्वलित की जाती है। जो अगली बरसात तक लगातार प्रज्वलित रहती है।

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हनुमान जी का हुआ था विवाह । हनुमान जी के विवाह का राज !!!!

दोस्तों आपका स्वागत है वास्तु शास्त्र में हम आज फिर उपस्थित है एक नहीं रहस्यम पोस्ट के साथ हनुमान जी के बारे में माना जाता है की वो बाल ब्रह्मचारी है। पर भारत के कुछ हिस्सों खासकर तेलंगाना में हनुमान जी को विवाहित माना जाता है। इन क्षेत्रों में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार हनुमानजी की पत्नी का नाम सुवर्चला है और वे सूर्य देव की पुत्री हैं। यहाँ पर हनुमानजी और सुवर्चला का एक प्राचीन मंदिर स्तिथ है। इसके अलावा पाराशर संहिता में भी हनुमान जी और सुवर्चला के विवाह की कथा है।



तेलंगाना के खम्मम जिले में है मंदिर :- 

हनुमानजी और उनकी पत्नी सुवर्चला का मंदिर तेलंगाना के खम्मम जिले में है यह एक प्राचीन मंदिर है। यहां हनुमानजी और उनकी पत्नी सुवर्चला की प्रतिमा विराजमान है। यहां की मान्यता है कि जो भी हनुमानजी और उनकी पत्नी के दर्शन करता है, उन भक्तों के वैवाहिक जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं और पति-पत्नी के बीच प्रेम बना रहता है।
खम्मम जिला हैदराबाद से करीब 220 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अत: यहां पहुंचने के लिए हैदराबाद से आवागमन के उचित साधन मिल सकते हैं। हैदराबाद पहुंचने के लिए देश के सभी बड़े शहरों से बस, ट्रेन और हवाई जहाज की सुविधा आसानी से मिल जाती है।


हनुमान जी के विवाह सम्बन्धी पौराणिक कथा :-


तेलंगाना के खम्मम जिले में प्रचलित मान्यता का आधार पाराशर संहिता को माना गया है। पाराशर संहिता में उल्लेख मिलता है कि हनुमानजी अविवाहित नहीं, विवाहित हैं। उनका विवाह सूर्यदेव की पुत्री सुवर्चला से हुआ है। संहिता के अनुसार हनुमानजी ने सूर्य देव को अपना गुरु बनाया था। सूर्य देव के पास 9 दिव्य विद्याएं थीं। इन सभी विद्याओं का ज्ञान बजरंग बली प्राप्त करना चाहते थे। सूर्य देव ने इन 9 में से 5 विद्याओं का ज्ञान तो हनुमानजी को दे दिया, लेकिन शेष 4 विद्याओं के लिए सूर्य के समक्ष एक संकट खड़ा हो गया।


शेष 4 दिव्य विद्याओं का ज्ञान सिर्फ उन्हीं शिष्यों को दिया जा सकता था जो विवाहित हों। हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी थे, इस कारण सूर्य देव उन्हें शेष चार विद्याओं का ज्ञान देने में असमर्थ हो गए। इस समस्या के निराकरण के लिए सूर्य देव ने हनुमानजी से विवाह करने की बात कही। पहले तो हनुमानजी विवाह के लिए राजी नहीं हुए, लेकिन उन्हें शेष 4 विद्याओं का ज्ञान पाना ही था। इस कारण अंतत: हनुमानजी ने विवाह के लिए हां कर दी।

जब हनुमानजी विवाह के लिए मान गए तब उनके योग्य कन्या की तलाश की गई और यह तलाश खत्म हुई सूर्य देव की पुत्री सुवर्चला पर। सूर्य देव ने हनुमानजी से कहा कि सुवर्चला परम तपस्वी और तेजस्वी है और इसका तेज तुम ही सहन कर सकते हो। सुवर्चला से विवाह के बाद तुम इस योग्य हो जाओगे कि शेष 4 दिव्य विद्याओं का ज्ञान प्राप्त कर सको। सूर्य देव ने यह भी बताया कि सुवर्चला से विवाह के बाद भी तुम सदैव बाल ब्रह्मचारी ही रहोगे, क्योंकि विवाह के बाद सुवर्चला पुन: तपस्या में लीन हो जाएगी।


यह सब बातें जानने के बाद हनुमानजी और सुवर्चला का विवाह सूर्य देव ने करवा दिया। विवाह के बाद सुवर्चला तपस्या में लीन हो गईं और हनुमानजी से अपने गुरु सूर्य देव से शेष 4 विद्याओं का ज्ञान भी प्राप्त कर लिया। इस प्रकार विवाह के बाद भी हनुमानजी ब्रह्मचारी बने हुए हैं। {  दोस्तों ऐसी ही और कहानियों, गुप्त कथाए, उपाय, समाधान आदि के लिए Follow बटन पर क्लिक करके हमें जरुर Follow कीजिए }
जय श्री राम


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पूजा घर मे भूल के भी ना करें ये गलतियाँ । वास्तु विशेष ।

 

पूजा घर वास्तु विशेष

 

“वास्तु के अनुसार बनाया गया पूजा घर या घर में रखा मंदिर, पूरे दिन के तनाव और चिंता को कुछ ही समय में शांत कर सकता है क्योकि भागदौड़ से भरे इस तनावपूर्ण जीवन में पूजा-पाठ का अहम स्थान है जो हमारे अंदर नई ऊर्जा भी भर देता है। लिहाजा पूजा घर बनवाते वक्त वास्तु के अनुसार कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है”

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• नियम 1 : “पूजा घर के लिये ईशान (उत्तर-पूर्व) दिशा सबसे उपयुक्त मानी गयी है। यह दिशा उत्तर व पूर्व दोनों शुभ दिशाओं से युक्त है। घर में पूजा घर ईशान दिशा में बनाने से सुख-समृद्धि और शांति की वृद्धि होती है।”

• नियम 2 : “पूजा घर के ऊपर या नीचे टॉयलेट नहीं होना चाहिए। और यदि संभव हो तो पूजा घर से सटा हुआ भी नहीं होना चाहिए।”

• नियम 3 : “गणेश जी की प्रतिमा पूर्व या पश्चिम दिशा में न रखकर दक्षिण दिशा में रखें।”

• नियम 4 : “हनुमान जी की तस्वीर या मूर्ति उत्तर दिशा में स्थापित करें ताकि उनका मुख दक्षिण दिशा की ओर रहे। अन्य देवी-देवताओं के साथ भगवान शिव की तस्वीर या मूर्ति रख सकते हैं।”

• नियम 5 : “पूजा घर में अपने बुजुर्गो की फोटो कभी नहीं रखनी चाहिए और ऐसे संत जिनसे आपने दीक्षा धारण नहीं की है उनकी भी फोटो नहीं रखनी चाहिए |”

• नियम 6 : “पूजाघर की दीवारों का रंग सफेद या हल्का पीला बेहतर रहता है। पूजाघर में सम्भव हो तो उत्तर या पूर्व की ओर खिड़की अवश्य रखें। दरवाजा भी इसी दिशा में हो तो और अच्छा है।”

• नियम 7 : “घर के पूजा घर में कभी स्थिर प्रतिमा नहीं लगानी चाहिये। गृहस्थ के लिये यह ठीक नहीं है। कागज की तस्वीरें व छोटी मूर्तियां लगा सकते हैं।”

• नियम 8 : “पूजा घर का स्थान सदैव आपके बैठने के स्थान से कुछ ऊँचा होना चाहिए |”

• नियम 9 : “पूजा घर के अन्दर जूते-चप्पल, झाडू बिल्कुल नहीं होने चाहिए। साथ ही किसी भी तरह की खंडित प्रतिमा भी पूजा घर के अंदर रखने की मनाही है।”

• नियम 10 : “जितना संभव हो घर की रसोई और शयनकक्ष में पूजा घर नहीं बनाना चाहिए।”

• नियम 11 : “पूजा घर का आकार पिरामिड जैसा हो तो बहुत ही लाभदायक है। साथ ही इसके दरवाजे स्वयं बन्द व खुलने वाले नहीं होने चाहिये।”

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नवरात्रि के तीसरे दिन इस विधि से करें मां चंद्रघंटा का पूजन, हर कार्य होगा सफल । माँ चन्द्रघंटा कथा

 

नवरात्रि विशेष


श्री दुर्गा का तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। नवरात्रि के तृतीय दिन इनका पूजन और अर्चना किया जाता है। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टोंसे मुक्ति मिलती है।इनकी आराधनासे मनुष्य के हृदय से अहंकार का नाश होता है तथा वह असीम शांति की प्राप्ति कर प्रसन्न होता है। माँ चन्द्रघण्टा मंगलदायनी है तथा भक्तों को निरोग रखकर उन्हें वैभव तथा ऐश्वर्य प्रदान करती है। उनके घंटो मे अपूर्व शीतलता का वास है।


असुरों के साथ युद्ध में देवी चंद्रघंटा ने घंटे की टंकार से असुरों का नाश कर दिया था। नवरात्रि के तृतीय दिन इनका पूजन किया जाता है। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वत: प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

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देवी दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है. दुर्गा पूजा के तीसरे दिन आदि-शक्ति दुर्गा के तृतीय स्वरूप माँ चंद्रघंटा की पूजा होती है. देवी चन्द्रघण्टा भक्त को सभी प्रकार की बाधाओं एवं संकटों से उबारने वाली हैं. इस दिन का दुर्गा पूजा में विशेष महत्व बताया गया है तथा इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन किया जाता है. माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक एवं दिव्य सुगंधित वस्तुओं के दर्शन तथा अनुभव होते हैं, इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है यह क्षण साधक के लिए अत्यंतमहत्वपूर्ण होते हैं.


चन्द्रघंटा देवी का स्वरूप तपे हुए स्वर्ण के समान कांतिमय है. चेहरा शांत एवं सौम्य है और मुख पर सूर्यमंडल की आभा छिटक रही होती है. माता के सिर पर अर्ध चंद्रमा मंदिर के घंटे के आकार में सुशोभित हो रहा जिसके कारण देवी का नाम चन्द्रघंटा हो गया है. अपने इस रूप से माता देवगण, संतों एवं भक्त जन के मन को संतोष एवं प्रसन्न प्रदान करती हैं. मां चन्द्रघंटा अपने प्रिय वाहन सिंह पर आरूढ़ होकर अपने दस हाथों में खड्ग,
तलवार, ढाल, गदा, पाश, त्रिशूल, चक्र,धनुष, भरे हुए तरकश लिए मंद मंद मुस्कुरा रही होती हैं. माता का ऐसा अदभुत रूप देखकर ऋषिगण मुग्ध होते हैं और वेद मंत्रों द्वारा देवी चन्द्रघंटा की स्तुति करते हैं.
माँ चन्द्रघंटा की कृपा से समस्त पाप और बाधाएँ विनष्ट हो जाती हैं. देवी चंद्रघंटा की मुद्रा सदैव युद्ध के लिए अभिमुख रहने की होती हैं,इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है इनकी अराधना सद्य:
फलदायी है, समस्त भक्त जनों को देवी चंद्रघंटा की वंदना करते हुए कहना चाहिए ” या देवी सर्वभूतेषु चन्द्रघंटा रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:”.. अर्थात देवी ने चन्द्रमा को अपने सिर पर घण्टे के सामान सजा रखा है उस महादेवी, महाशक्ति चन्द्रघंटा को मेरा प्रणाम है, बारम्बार प्रणाम है. इस प्रकार की
स्तुति एवं प्रार्थना करने से देवी चन्द्रघंटा की प्रसन्नता प्राप्त होती है.

 

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देवी चंद्रघंटा पूजा विधि :

देवी चन्द्रघंटा की भक्ति से आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है. जो व्यक्ति माँ चंद्रघंटा की श्रद्धा एवं भक्ति भाव सहित पूजा करता है उसे मां की कृपा प्राप्त होती है जिससे वह संसार में यश, कीर्ति एवं सम्मान प्राप्त करता है. मां के भक्त के शरीर से अदृश्य उर्जा का विकिरण होता रहता है जिससे वह जहां भी होते हैं वहां का वातावरण पवित्र और शुद्ध हो जाता है, इनके घंटे की ध्वनि सदैव भक्तों की प्रेत-बाधा आदि से
रक्षा करती है तथा उस स्थान से भूत, प्रेत एवं अन्य प्रकार की सभी बाधाएं दूर हो जाती है.जो साधक योग साधना कर रहे हैं उनके लिए यह दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस दिन कुण्डलनी जागृत करने हेतु स्वाधिष्ठान चक्र (Swadhisthan Chakra) से एक चक्र आगे बढ़कर मणिपूरक चक्र (Manipurak Chakra) का अभ्यास करते हैं. इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्टहोता है . इस देवी की पंचोपचार सहित पूजा करने के बाद उनका आशीर्वाद प्राप्त कर योग का अभ्यास करने से साधक को अपने प्रयास में आसानी से सफलता मिलती है.
तीसरे दिन की पूजा का विधान भी लगभग उसी प्रकार है जो दूसरे दिनकी पूजा का है. इस दिन भी आप सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी-देवता, तीर्थों, योगिनियों, नवग्रहों, दशदिक्पालों, ग्रम एवं नगर देवता की पूजा अराधना करें फिर माता के परिवार के देवता, गणेश (Ganesh), लक्ष्मी (Lakshmi), विजया (Vijya), कार्तिकेय (Kartikey), देवी सरस्वती(Saraswati),एवं जया (Jaya) नामक योगिनी की पूजा करें फिर देवी चन्द्रघंटा की पूजा अर्चना करें.

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चन्द्रघंटा की मंत्र :

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।

चन्द्रघंटा की स्तोत्र पाठ :

आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥

चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥

नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥

नोट : { इस पोस्ट को अपने रिश्तेदारों एंव मित्रो के साथ ज्यादा से ज्यादा शेयर करे, और माता की आशीर्वाद प्राप्त करे }

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Vastu Shastra

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